शिवाजी ने छत्रसाल के कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘वीर बुंदेले कुमार, जो कोई देशोद्धार का पवित्र व्रत धारण करता है : नीति, त्याग और समता के देवता मंगल-गान करते हुए उसके साथ-साथ चलते हैं। शालीनता, माधुर्य और सत्य-प्रतिज्ञा उस पर चँवर डुलाती हैं। दक्षता और तत्परता उसका मार्ग सार्थक करती है। छत्रसाल, मैं भी तुम्हारी ही भाँति स्वाधीनता का पुजारी हूँ।’
इतिहास और भारतीय संस्कृ ति के मर्मज्ञ आचार्य चतुरसेन की लौह-लेखनी से निकले इस प्रेरक उपन्यास में बुदेलखंड की आज़ादी की बहुत ही संघर्षपूर्ण कहानी दी गई है। छत्रसाल ने जिस अनोखी सूझ-बूझ, आत्माभिमान और शूरवीरता का परिचय देकर बुंदेलखंड को स्वतंत्र कराया उसका बहुत ही रोचक, उत्तेजक और रोमांचकारी वर्णन इस उपन्यास की विशेषता है।
Imprint: Penguin Swadesh
Published: Jan/2024
ISBN: 9780143465461
Length : 144 Pages
MRP : ₹199.00