वह आकर बोला, अपने संदूक की चाभी दे।’ गला बड़ा मोटा था – भारी। अचानक, सुनते ही ख़्याल होता था, मानो कोशिश करके वह ऐसा भारी गले से बोल रहा था। शुभदा कुछ नहीं बोली।
उसने फिर वैसे ही स्वर में, लाठी को फिर एक बार ज़मीन पर पटककर कहा, ‘चाभी दे, नहीं तो गला दबाकर मार डालूँगा।’
अब शुभदा उठ बैठी । तकिए के नीचे से चाभियों का गुच्छा निकालकर पास ही फें ककर धीरे-धीरे शांत भाव से बोली, मेरे बड़े सन्दूक के दाहिनी ओर के खाने में पचास रुपए का नोट हैकृवही लेना। बाईं ओर विश्वनाथ बाबा का प्रसाद है, उसपर कहीं हाथ न डालना।’ जिस तरह शांत भाव से उसने यह सब कह डाला, उससे यह नहीं मालूम होता था कि उसे अब रत्तीभर भी डर लग रहा है। शुभदा एक ऐसी नारी की मार्मिक कथा है जो गरीबी की यातनाएंॅ भोगते हुए अपने नशेड़ी पति के प्रति समर्पिता ही नहीं, बल्कि स्वाभिमानिनी भी है – शुभदा और उसकी विधवा बेटी के माध्यम से शरत् बाबू ने नारी वेदना की गहन अभिव्यक्ति की है। संभवतया इसी कारण उन्हें ‘नारी वेदना का पुरोहित’ कहा जाता है।
Imprint: Penguin Swadesh
Published: Jan/2024
ISBN: 9780143465447
Length : 202 Pages
MRP : ₹199.00