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Anupma/अनुपमा

“यह काल की गति है या कर्मों का फल,” अनुपमा की माँ ने अपने पति कालाचार्य से कहा, “कि अनुपमा का अपहरण कर लिया गया है। अपहरण की योजना में रूपमती का हाथ स्पष्ट ही दिखता है। साथ ही उसके पीछे गर्द भिल्ल की शक्ति और रामभट्ट की कुटिल नीति भी अवश्य है।”
प्राचीन उज्जैन के व्यसनी नरेश गर्द भिल्ल ने प्रजापुत्री अनुपमा का अपहरण करा उसे अपने महल में डाल लिया, परिणामस्वरूप ऐसा भयंकर विस्फोट हुआ, जिससे उज्जैन नगरी की ईंट-से-ईंट बज उठी। फिर उदय हुआ उस पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य का जिसके नाम से आज तक विक्रम संवत चला आ रहा है। यह एक सशक्त घटना-प्रधान ऐतिहासिक उपन्यास है।

Bhitichitra Ki Mayuri/भित्तिचित्र की मयूरी

इस उपन्यास की नायिका सरस्वती सद्विचारों से प्रेरित है। उसके संस्कारों में भारत की संपूर्ण संस्कृति की ही झलक मिलती है।
जिस प्रकार भित्ति चित्रों के शास्त्रीय युग में चेहरे पर अजंता प्रतिरूपण की वृत्ताकार सुनम्यता और मध्यकालीन प्रवृत्तियों की भुजाओं के कोणीय मोड़ जैसी दोनों विशेषताओं को यहाँ भली-भांति चिह्नित किया गया है, उसी प्रकार इस उपन्यास की नायिका को भी इसमें चित्रित किया गया है। इस उपन्यास में उन पिताओं की दुविधा को भी दर्शाया गया है जो अपनी बेटियों की शादी धन के अभाव में अयोग्य वरों के साथ कर देते हैं।

Chand Chhoota Man/चाँद छूता मन

अशेष था एक ऐसा पुरुष, जिसे घर-परिवार, दुनिया समाज से भी अधिक प्रिय था ‘देहवाद’। वह स्त्री को मात्र देह-सुख के लिए उपयोगी मानता था। स्त्री चाहे घर की निर्मल मना, निष्कपट निष्पाप सहधर्मिणी हो या बाहर की बदनाम स्त्रियाँ।
हिमानी थी एक ऐसी पत्नी, जिसने पति से प्यार, सम्मान और सहज व्यवहार कभी नहीं पाया। वह अपने ही घर में दबी-घुटी और परायों का-सा जीवन जीती रही।
आहुति थी एक कम-उम्र युवती, जिसे बहला-फुसलाकर विवाह के लिए बाध्य कि या और ले आया उस घर में, जहाँ एक आराध्य देवी पहले से मौजूद थी और निरंतर तिल-तिलकर गल रही थी।
आहुति ने देखा और होम दिया अपना सारा जीवन। अशेष ने जिस स्त्री को उसके अधिकारों से वंचित कर रखा था, उसी के उच्चासन पर उसे स्थापित करना चाहा, पर ऐसा नहीं होने दिया आहुति ने। उसने एक लंबी लड़ाई लड़ी और हिमानी को घर-बाहर सब जगह ऐसे शिखर पर पहुँचा दिया कि अशेष बौना लगने लगा और अंत में उसने समर्पण कर दिया अपनी पहली पत्नी के आगे।

Dafa Chaurasi/दफ़ा चौरासी

गोली खाने के लिए छाती ताने खड़े उस प्रेमी के चमकते हुए चेहरे और घुँघराले बालों की ओर गौर से देखता हुआ बलदेवा उपेक्षा से बोला, “गोलियाँ बहुत महँगी हैं आजकल।” पलटकर जाते हुए बलदेवा का कंधा थामकर चित्रकार ने कहा, “देख बलदेवा, अगर तू मुझे नहीं मारेगा तो मैं तुझे मार दूँगा। दोनों तरह से उसकी मुश्किल आसान होकर रहेगी। बोल, क्या कहता है?”
एक तरफ चित्रकार का प्रेम और त्याग! दूसरी तरफ डाकू बलदेवा की हिंसा और प्रतिशोध! और फिर इनके टकराव की यह अनोखी कहानी जिसे पंडित आनंद कुमार ने सर्वप्रथम फिल्म अनोखी रात के लिए लिखा और अब उसे उपन्यास के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। व्यक्ति के अंतर्मन को छूने वाला एक मार्मिक उपन्यास।

Doctor Ke Aane Se Pahle/डॉक्टर के आने से पहले

आज के वैज्ञानिक युग में बीमारी पर काबू पाना पहले से अधिक सरल हो गया है। छोटे-मोटे रोगों के प्रारंभिक इलाज, भयंकर बीमारियों की तात्कालिक रोकथाम तथा दुर्घटना होने पर फ़र्स्ट एड का काम आज आप थोड़े-से प्रशिक्षण से बखूबी कर सकते हैं। यह पुस्तक इस दिशा में आपका मार्ग दर्शन करेगी। इस पुस्तक को पढ़िए, पढ़ाइए और इसमें बताए गए उपायों को अपना कर लाभ उठाइए।
दुर्घटनाओं : डूबने, जल जाने, ज़हरीले जानवर के काटने, घाव और चोट लगने पर डॉक्टर के पहुँचने से पहले क्या करें, इस विषय में इस पुस्तक में संपूर्ण वैज्ञानिक जानकारी दी गई है।

Durgesh Nandini/दुर्गेश नन्दिनी

दुर्गेश नन्दिनी बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित प्रथम बांग्ला उपन्यास है। सन 1865 के मार्च मास में यह उपन्यास प्रकाशित हुआ। दुर्गेश नन्दिनी बंकिमचन्द्र की चौबीस से लेकर 26 वर्ष के आयु में लिखित उपन्यास है। इस उपन्यास के प्रकाशित होने के बाद बांग्ला कथासाहित्य की धारा एक नए युग में प्रवेश कर गई। 16वीं शताब्दी के उड़ीसा को केंद्र में रखकर मुगलों और पठानों के आपसी संघर्ष की पृष्ठभूमि में यह उपन्यास रचित है। फिर भी इसे संपूर्ण रूप से एक ऐतिहासिक उपन्यास नहीं माना जाता, क्योंकिे इसमें काल्पनिकता का पुट है।

Gaddar/गद्दार

गद्दार की कथा कृश्न चन्दर के अनुभव की कथा है—तपे हुए, देखे हुए अनुभव की। देश के विभाजन की त्रासदी की इस निराली और एक साँस में पढ़ी जानेवाली कृति को पढ़ना एक अनूठा, दुर्लभ अनुभव ही नहीं वरन् एक ऐसे चिंतन का मूल है, जो देश-विभाजन की त्रासदी पर नए तरह से सोचने को विवश करती है और उस त्रासदी से उपजे ज्वलंत और अनसुलझे प्रश्नों से पाठक को बार-बार जूझने को विवश करती है।
फूलों की रंगो-बू से सराबोर रचना से अगर आँच भी आ रही हो तो मान लेना चाहिए कि कृश्न चन्दर वहीं पूरी तरह मौजूद हैं। यही इनकी कलम की ख़ास पहचान है यानी रोमानी तेवर में खालिस इंकलाबी बात। उनकी तमाम रचनाओं में जैसे एक अर्थपूर्ण व्यंग्य, दर्द और कराह छुपी हुई है, जो हमें अद्भुत रूप से अपनी दुर्बलता के ख़िलाफ़ खड़ा करने में समर्थ है। कारण, रचनात्मकता के साथ चलनेवाला जीवन-संघर्ष जिसे उन्होंने लहू की आग में तपाया है। वस्तुतः कृश्न चन्दर की रचनाएँ हमारे समय की गहन मानवीय, सामाजिक और सियासी सच्चाइयों की पर्याया्लय हैं। वे हर पल असलियत के साथ हैं। कहना न होगा कि इस कलम के जादूगर कृश्न चन्दर की तमाम रचनाओं को बड़े चाव के साथ पढ़ा और सहेजा जाएगा। मानवीय, सामाजिक और सियासी अंतर्द्वंद्वों की अनमोल और संग्रहणीय कृति।

Jagriti/जागृति

यह उपन्यास एक रोचक कथा के साथ-साथ एक ओर जहाँ भारतीय संस्कृति, परंपरा के गौरवमयी अतीत से परिचित कराता है, तो वहीं इसमें राजनीति के विसंगतिपूर्ण निर्णयों से भविष्य की सावधानी का संकेत भी मिलता है। एक बार में कहें तो जागृति गुरुदत्त का श्रेष्ठ उपन्यास है जिसमें दो जाट-परिवारों के संघर्ष और उसके परिणामस्वरूप स्त्रियों की करुण दशा का मार्मिक चित्रण हुआ है। गुरुदत्त के पाठक इस उपन्यास को एक बार पढ़ने के बाद कभी भूल नहीं पाएँगे।
अपने आप में यह उपन्यास अदभुत एवं इतिहास के अनोखे पन्नों को सामने रखने वाला है।

Kalame Rumi/कलामे रूमी

कलामे रूमी को फारसी भाषा से सीधा अनुवाद किया गया है।
अभय तिवारी ने रूमी नाम से फ़ारसी साहित्य के विद्वान सूफ़ी विचारक और संत मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी की प्रसिद्ध पुस्तक “मसनवी” का हिंदी अनुवाद किया है। मसनवी फ़ारसी साहित्य की अद्वितीय कृति है। इसमें संस्मरणों और रूपकों के ज़रिए ईश्वर और आस्था के मसलों पर विवेचन किया गया है। रूमी सिर्फ़ कवि नहीं है, वे सूफ़ी हैं, वे आशिक़ हैं, वे ज्ञानी हैं, विद्वान हैं और सबसे बढ़कर वे एक गुरु हैं। उनमें एक तरफ़ तो उस माशूक़ के हुस्न का नशा है, विसाल की आरज़ू व जुदाई का दर्द है, और दूसरी तरफ़ नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की गहराईयों से निकाले हुए अनमोल मोती हैं। इसीलिए रूमी का साहित्य सारे संसार को सम्मोहित किए हुए है।

Zindagi Aur Tufan/ज़िंदगी और तूफ़ान

विचित्र संयोगों के तूफ़ानी भँवरों में फँसते-निकलते एक युवक तथा चार युवतियों की यह एक अनोखी ज़िंदगी की मार्मिक कहानी है।
महावीर अधिकारी के बहुचर्चित उपन्यास ‘तलाश’ पर यह पटकथा लिखी गई है। यह पटकथा स्कूल-कालेज के छात्राओं के लिए भी बहुत उपयोगी है, क्योंकि इसका लेखन इस प्रकार किया गया है कि पढ़ने वाले को एक ओर जहां भरपूर मनोरंजन का आभास होता है, वहीं इसकी कथा अपने ईर्द-गिर्द पात्रों पर घूमती ही नजर आती है और इससे भी बढ़कर फिल्म पटकथा लेखन के गुर भी इसमें मिलते हैं।

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