“आप इतनी छोटी उम्र में विवाह क्यों कर लेते हैं महाराज?” मैडम ने पूछा।
इस पर नाना साहब बोले—“इसलिए कि विवाह को हम पवित्र अनुष्ठान मानते हैं।”
मैडम ने फिर पूछा—“क्या इतनी छोटी उम्र में प्रेम संभव है?”
उन्होंने उत्तर दिया—“प्रेम को हम विवाह के लिए गौण मानते हैं; मुख्य बात है आत्मा की एकता।” सुनकर अंग्रेज़ महिला विस्मय से भर उठी!
पूर्व और पश्चिम के विचारों का संगम दर्शाने वाला आचार्य जी का यह उपन्यास अपने आंचल में एक सौ साल पुराने परिवेश को समेटे हुए है।
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Dhahati Hui Deewar/ढहती हुई दीवार
“स्वदेश कितना प्यारा और आकर्षक होता है! देखिए मदर, लालाजी की आँखें स्वदेश भूमि को प्रणाम कर रही हैं। ओह! कितनी महानता है आप सब विभूतियों में।” रतन ने कहा था यह श्रीमती ऐनी बीसेन्ट का हाथ पकड़कर और ऐनी बीसेन्ट ने भी बहुत अधिक प्रेम में भरकर कहा था, “सत्य ही भारत महान् देश है और हम उससे गौरवान्वित हैं।”
आचार्य चतुरसेन के मार्मिक और ऐतिहासिक खोजों से पूर्ण इस रोमांचक उपन्यास में, जिन्ना की पत्नी की कहानी है, जो प्रेम, पीड़ा और अलगाव को रेखांकित करती है और इसमें है एक तवायफ़ बी हमीदन भी, जिसका साहस, जिसकी सच्चाई दिलों में जोश भर देती है। इसमें केशव की मां भी है, जो आदर्श के ठोस धरातल पर खड़ी है, जिसे भारत पुत्री कहना, उसके कर्म को सम्मान देना है। ढहती हुई दीवार आचार्य जी का एक ऐसा अद्भुत उपन्यास है, जोपाठक के मन को देश-प्रेम की भावना से भर देता है।
Neelmani/नीलमणि
नारी की स्वतंत्रता उन हज़ारों घरों के लिए आज भी एक सवाल बनी हुई है, जिन्होंने यूरोपीय सभ्यता के अनुकरण के कारण न केवल अपने परिधान बदले हैं, वरन मन और दिमाग भी बेच डाले हैं, परंतु भारतीय नारी भले ही यूरोपीय सभ्यता का अनुकरण करे, फिर भी वह कभी अपनी भारतीय संस्कृति को नहीं छोड़ती, इसी परिकल्पना को साकार करती है यह कृति। इस पुस्तक में प्रेरक कथावस्तु के माध्यम से महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों के हनन के खिलाफ एक सशक्त आवाज उठाई गई है।
ऐतिहासिक कथा-साहित्य के कुशल चितेरे तथा लाखों पाठकों में आज भी लोकप्रिय रचनाकार आचार्य चतुरसेन की मुग्ध कर देने वाली लेखनी से उपजा रोचक उपन्यास है नीलमणि।
इस पुस्तक में नीलमणि उपन्यास के साथ ही धीगं धनी का धन नामक रोचक कहानी भी संकलित की गई है।
Chattan/चट्टान
इस ऐतिहासिक उपन्यास की कथा महाराष्ट्र के अतीत से संबंधित है, जो अपने आंचल में उस समय के देशप्रेम, शौर्य, साहस और रक्षा-कौशल के प्रसंग समेटे हुए है।
उपन्यास का आरंभ भयानक अँधेरी रात, जंगल का सन्नाटा और नंगी तलवारों के साये में खून से लथपथ तानाजी से होता है; तथा अंत तोपों की गर्जन के साथ सिंहगढ़ के किले पर भगवा ध्वज फहराने व लाशों के ढेर से उनकी कंचन-काया को निकलने से होता है।
उपन्यास में कौतूहल अंत तक बना रहता है और हमारी आँखों के सामने अतीत अपने उज्ज्वल रूप में, चलचित्र की भाँति सरकता चला जाता है . . . मनुष्य के संकल्प। सजगता, दृढ़ता और कर्तव्यपरायणता का एक भव्य चित्र है चट्टान।
Jayganw Ke Bahadur/जयगांव के बहादुर
क्या आप जानते हैं कि हिंदी के प्रसिद्ध लेखक अभिमन्यु अनत ‘मारिशस’ के निवासी थे और जिनके ढेर सारे उपन्यास और कहानी-संग्रह भारत में प्रकाशित हुए?
उन्हीं अभिमन्यु अनत का बेहद रोचक और साहस से भरपूर उपन्यास है जयगांव के बहादुर।
यह उस बहादुर युवक की रोमांचक कहानी है, जिसने एक अत्याचारी के चंगुल से गाँव को मुक्त कराया और फिर जिस गाँव में अमन-चैन की मधुर बंसी बजने लगी।
पढ़िए और समझिए इस बात को कि अगर हम में साहस है, जूझने की शक्ति है, तो कभी कोई हमारे साथ अन्याय और अत्याचार नहीं कर सकता।
Chautha Saptak/चौथा सप्तक
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ’अज्ञेय’ द्वारा 1943 ई० में नई कविता के प्रणयन हेतु सात कवियों का एक मंडल बनाकर तार सप्तक का संकलन एवं संपादन किया गया। चौथा सप्तक अज्ञेय द्वारा संपादित हिंदी के 7 कवियों की कविताओं का संग्रह है। इस काव्य संग्रह का प्रथम प्रकाशन 1979 ईस्वी में हुआ था। नाम के आधार पर यह पुस्तक अज्ञेय द्वारा संपादित तीन सप्तकों—तार सप्तक, दूसरा सप्तक तथा तीसरा सप्तक की सात कवियों की कविताओं के संग्रह के क्रम से जुड़ती है। इसमें अवधेश कुमार, राजकुमार कुम्भज, स्वदेश भारती, नन्दकिशोर आचार्य, सुमन राजे, श्रीराम वर्मा, राजेन्द्र किशोर की रचनाएँ संकलित हैं।
Sandesh Wahak/संदेश वाहक
“प्रख्यात उपन्यासकार नरेन्द्र कोहली की उपन्यास शृंखला तोड़ो कारा तोड़ो पर आधारित यह नाट्य रूपांतर है। इसमें स्वामी विवेकानन्द के जीवन और दर्शन को नाटकीय ढंग से खूबसूरती के साथ उकेरा गया है। स्वामी जी ने सतत संघर्ष किया। उनका व्यक्तित्व आकर्षक था, वाणी ओजपूर्ण थी, जो भी उन्हें देखता, सुनता उसपर जादू का सा असर होता, वह दीवाना हो जाता। युवाओं को तो उन्होंने पागल-सा बना दिया था। वह योद्धा संन्यासी थे। इसी नाटक में कहा गया है कि ‘कौन-सा गुण था, जो स्वामी जी में नहीं था। मानव के चरम विकास की साक्षात मूर्ति थे वे। भारत की आत्मा और स्वामी जी एकाकार हो गए थे।’
Tulsidas/तुलसीदास
परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुं जग दुर्लभ कछु नाहीं।। (जिनके मन में सदा दूसरों की भलाई का विचार रहता है, उन्हें संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं होती है।) ‘रामचरित’ के अमर गायक महाकवि तुलसीदास चार शताब्दियों से भारतीय जनमानस में श्रद्धा-पुरुष की तरह विराजते रहे और आगे भी युग-युगों तक गोस्वामी जी और उनकी रचनाएँ चिरस्मरणीय रहेंगी। यह पुस्तक हिन्दी के उन्हीं भक्त कवि गोस्वामी तुलसीदास के जीवन-परिचय, लोकप्रिय दोहों-चौपाइयों तथा अन्य काव्य-महिमा को अपने में समेटे हुए है। इस संकलन का संपादन प्रसिद्ध लेखक सुदर्शन चोपड़ा ने किया है तथा काव्य-खंड का चयन और टीका तुलसी-साहित्य के मर्मज्ञ पीएस भाकुनी ने की है।
Aabha/आभा
लौह-लेखनी के धनी आचार्य चतुरसेन शास्त्री का यह उपन्यास असाधारण परिस्थितियों में फँसी आधुनिक नारी की करुण गाथा है। इस रोमांटिक उपन्यास में लेखक ने स्त्री-पुरुष संबंधों का बहुत ही मार्मिकता से उद्घाटन किया है।
वरदान और अभिशाप के बीच झूलती नारी अपना संतुलन खो बैठती है और ऐसे घटनाचक्र से होकर गुज़रती है, जिसके लिए वह बिलकुल तैयार न थी। आभा में उसके मोह भंग की कहानी पढ़ने को मिलेगी।
लेखक ने इस उपन्यास में चरित्रों को असाधारण परिस्थितियों में रखकर जैसा विश्लेषण किया है, उससे पाठक प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। साथ ही पढ़िए पति-पत्नी के बीच अनूठे संघर्ष की मर्मस्पर्शी कहानी ‘द्वंद्व।’
Aakhiri Aawaaz/आखिरी आवाज़
रांगेय राघव के सामाजिक उपन्यासों में यह उनका अंतिम उपन्यास है। इसमें स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद बदलते हुए ग्राम्य-जीवन का चित्रण है। देहाती जीवन की दलबंदी, मुकदमेबाज़ी, भ्रष्टाचार और राजनीति संबंधी अनेक घटनाएँ हैं, जिन्हें बड़े विस्तार और रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कई आलोचकों ने इस उपन्यास को प्रेमचंद की परंपरा से भी जोड़ा है। हिरदेराम मुख्य प्रभावी पात्र है जो ग्रामीण जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। गोविन्द दुश्चरित्र व्यक्ति है। नारी पात्रों में निहाल कौर निर्लज्ज, चरित्रहीन युवती है। चंपा, चमेली भी ऐसी ही हैं जो शारीरिक संबंध बनाने में बहुत तेज झलक भी मिलती है। कथोपकथन व्यंव्यंग्यात्मक शैली में है। लेकिन इस उपन्यास की लेखन परिपक्वता अपने आप में बेजोड़ है।