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Omprakash Valmiki ki Yaadgari Kahaniyan/ओमप्रकाश वाल्मीकि की यादगारी कहानियाँ

Omprakash Valmiki ki Yaadgari Kahaniyan/ओमप्रकाश वाल्मीकि की यादगारी कहानियाँ

Omprakash Valmiki/ओमप्रकाश वाल्मीकि
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Paperback / Hardback

स्त्री को पुरुष समाज कितना भी कमज़ोर समझे, लेकिन वह कमज़ोर नहीं है। ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपनी कहानियों में ऐसी ही अदम्य साहस से परिपूर्ण स्त्रियों का चित्रण किया है। वाल्मीकि जी की कहानियों में सिर्फ दलित चिंतन ही नहीं है बल्कि स्त्री शोषण, अत्याचार आदि पर भी उनकी लेखनी उतनी ही पैनी है, जितनी दलित शोषण और चिंतन को लेकर। अपनी कहानियों के माध्यम से वाल्मीकि जी ने समाज तथा परिवार में हो रहे स्त्री शोषण का बहुत ही बारीकी से चित्रण किया है। इनकी कहानियों में स्त्री पात्रों तथा उनके शोषण को पढ़कर ऐसा लगता है कि ये स्त्री चरित्र सिर्फ वाल्मीकि की कहानियों का ही प्रतिनिधित्व नहीं करतीं, बल्कि हमारे समाज की अधिकांश स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। जो हमेशा इस समस्या से टकराती है। यह समस्या हमारे समाज में कोढ़ की तरह है जो दिन पर दिन घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। हम 21वीं सदी के प्रांगण में प्रवेश तो कर गए हैं लेकिन स्त्री के प्रति हमारा जो नज़रिया है वह आज भी पुरातन वाला है। समाज के नज़रिए का प्रतिरोध करती वाल्मीकि जी की ये यादगारी कहानियॉं अपने आपमें बेजोड़ हैं।  

Imprint: Penguin Swadesh

Published: Apr/2024

ISBN: 9780143467496

Length : 208 Pages

MRP : ₹250.00

Omprakash Valmiki ki Yaadgari Kahaniyan/ओमप्रकाश वाल्मीकि की यादगारी कहानियाँ

Omprakash Valmiki/ओमप्रकाश वाल्मीकि

स्त्री को पुरुष समाज कितना भी कमज़ोर समझे, लेकिन वह कमज़ोर नहीं है। ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपनी कहानियों में ऐसी ही अदम्य साहस से परिपूर्ण स्त्रियों का चित्रण किया है। वाल्मीकि जी की कहानियों में सिर्फ दलित चिंतन ही नहीं है बल्कि स्त्री शोषण, अत्याचार आदि पर भी उनकी लेखनी उतनी ही पैनी है, जितनी दलित शोषण और चिंतन को लेकर। अपनी कहानियों के माध्यम से वाल्मीकि जी ने समाज तथा परिवार में हो रहे स्त्री शोषण का बहुत ही बारीकी से चित्रण किया है। इनकी कहानियों में स्त्री पात्रों तथा उनके शोषण को पढ़कर ऐसा लगता है कि ये स्त्री चरित्र सिर्फ वाल्मीकि की कहानियों का ही प्रतिनिधित्व नहीं करतीं, बल्कि हमारे समाज की अधिकांश स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। जो हमेशा इस समस्या से टकराती है। यह समस्या हमारे समाज में कोढ़ की तरह है जो दिन पर दिन घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। हम 21वीं सदी के प्रांगण में प्रवेश तो कर गए हैं लेकिन स्त्री के प्रति हमारा जो नज़रिया है वह आज भी पुरातन वाला है। समाज के नज़रिए का प्रतिरोध करती वाल्मीकि जी की ये यादगारी कहानियॉं अपने आपमें बेजोड़ हैं।  

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