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Nij Jeevan Ki Ek Chhata / निज जीवन की एक छटा

Nij Jeevan Ki Ek Chhata / निज जीवन की एक छटा

Aatmkatha / आत्मकथा

Ramprasad Bismil / रामप्रसाद बिस्मिल
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Paperback / Hardback

निज जीवन की एक छटा रामप्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखा गया आत्म-चरित्र है, जिसमें उनके पूर्वजों का जीवन वर्णित करते हुए रामप्रसाद बिस्मिल ने स्वयं अपनी कहानी लिखी है कि उन्होंने क्रांति के क्षेत्र में कैसे कदम रखा। बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रांत आगरा व अवध की लखनऊ सेंट्रल जेल की 11 नंबर बैरक में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियों को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। बाद में बिस्मिल को गोरखपुर जेल में लाया गया। 16 दिसंबर 1927 को बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा का आख़िरी अध्याय (अंतिम समय की बातें) पूर्ण करके जेल से बाहर भिजवा दिया। 18 दिसंबर 1927 को माता-पिता से अंतिम मुलाकात की और सोमवार 19 दिसंबर 1927 को प्रात:काल 6 बजकर 30 मिनट पर गोरखपुर की जिला जेल में उन्हें फाँसी दे दी गई। बिस्मिल के बलिदान होते ही उनकी आत्मकथा प्रकाशित हो गई थी, लेकिन तब प्रकाशित होते ही सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन आज़ाद भारत में यह ऐतिहासिक पुस्तक पुन: प्रकाशित की गई है, ताकि अपने बलिदानियों के बारे में नई पीढ़ी सबकुछ जान सके।

Imprint: Penguin Swadesh

Published: Aug/2025

ISBN: 9780143478058

Length : 224 Pages

MRP : ₹199.00

Nij Jeevan Ki Ek Chhata / निज जीवन की एक छटा

Aatmkatha / आत्मकथा

Ramprasad Bismil / रामप्रसाद बिस्मिल

निज जीवन की एक छटा रामप्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखा गया आत्म-चरित्र है, जिसमें उनके पूर्वजों का जीवन वर्णित करते हुए रामप्रसाद बिस्मिल ने स्वयं अपनी कहानी लिखी है कि उन्होंने क्रांति के क्षेत्र में कैसे कदम रखा। बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रांत आगरा व अवध की लखनऊ सेंट्रल जेल की 11 नंबर बैरक में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियों को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। बाद में बिस्मिल को गोरखपुर जेल में लाया गया। 16 दिसंबर 1927 को बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा का आख़िरी अध्याय (अंतिम समय की बातें) पूर्ण करके जेल से बाहर भिजवा दिया। 18 दिसंबर 1927 को माता-पिता से अंतिम मुलाकात की और सोमवार 19 दिसंबर 1927 को प्रात:काल 6 बजकर 30 मिनट पर गोरखपुर की जिला जेल में उन्हें फाँसी दे दी गई। बिस्मिल के बलिदान होते ही उनकी आत्मकथा प्रकाशित हो गई थी, लेकिन तब प्रकाशित होते ही सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन आज़ाद भारत में यह ऐतिहासिक पुस्तक पुन: प्रकाशित की गई है, ताकि अपने बलिदानियों के बारे में नई पीढ़ी सबकुछ जान सके।

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Ramprasad Bismil / रामप्रसाद बिस्मिल

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