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Meera/मीरा

Meera/मीरा

Ed. Sudarshan Chopra/सं. सुदर्शन चोपड़ा
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Paperback / Hardback

लोक कहे मीरा भई बावरी, भ्रम दूनी ने खाग्यो। कोई कहैं रंग लाग्यो। (लोग कहते हैं कि मीरा पागल हो गई है। यही भ्रम दुनिया को खा गया है। कोई कहता है, यह तो प्रेम लग गया है अर्थात मीरा का भक्ति-भाव कृष्ण में आत्मसात हो गया है।) सचमुच मीरा कृष्ण के प्रेम में दीवानी हो गई थी। मीरा ने स्वयं को कृष्ण की दासी के रूप में साकार कर लिया। प्रभु-चरणों के निकट वह भाव-विभोर होकर नाचती थी। माया-मोह, नाते-रिश्तों से दूर वह कृष्णमय हो गई थी। उसके तो सिर्फ गिरधर गोपाल थे, दूसरा कोई नहीं था। अपार सौंदर्य की धनी, सुख-वैभव में रही, पर उसने सर्वस्व त्याग दिया। न जाने कितने कष्ट और अत्याचार सहे, फिर भी गोविंद के गुण गाती रही। भक्ति-काल की अद्भुत कवियित्री थी मीरा और सरस-मधुर कंठी की धनी भी, जिसके पद आज भी जन-जन में प्रिय हैं। मीरा की पदावली को लोग बड़े भक्ति-भाव से गाते हैं। साथ ही पढ़िए मीरा की मार्मिक जीवनी भी। 

Imprint: Penguin Swadesh

Published: May/2024

ISBN: 9780143468202

Length : 160 Pages

MRP : ₹150.00

Meera/मीरा

Ed. Sudarshan Chopra/सं. सुदर्शन चोपड़ा

लोक कहे मीरा भई बावरी, भ्रम दूनी ने खाग्यो। कोई कहैं रंग लाग्यो। (लोग कहते हैं कि मीरा पागल हो गई है। यही भ्रम दुनिया को खा गया है। कोई कहता है, यह तो प्रेम लग गया है अर्थात मीरा का भक्ति-भाव कृष्ण में आत्मसात हो गया है।) सचमुच मीरा कृष्ण के प्रेम में दीवानी हो गई थी। मीरा ने स्वयं को कृष्ण की दासी के रूप में साकार कर लिया। प्रभु-चरणों के निकट वह भाव-विभोर होकर नाचती थी। माया-मोह, नाते-रिश्तों से दूर वह कृष्णमय हो गई थी। उसके तो सिर्फ गिरधर गोपाल थे, दूसरा कोई नहीं था। अपार सौंदर्य की धनी, सुख-वैभव में रही, पर उसने सर्वस्व त्याग दिया। न जाने कितने कष्ट और अत्याचार सहे, फिर भी गोविंद के गुण गाती रही। भक्ति-काल की अद्भुत कवियित्री थी मीरा और सरस-मधुर कंठी की धनी भी, जिसके पद आज भी जन-जन में प्रिय हैं। मीरा की पदावली को लोग बड़े भक्ति-भाव से गाते हैं। साथ ही पढ़िए मीरा की मार्मिक जीवनी भी। 

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